यह मध्य प्रदेश के इंदौर जिले की महू तहसील में जानापाव कुटी गांव के पास इंदौर - मुंबई राजमार्ग पर स्थित है। यह इंदौर से 45 किलोमीटर दूर है।यह समुद्र तल से 854 मीटर की ऊंचाई पर स्थित एक पर्वत है और विंध्यांचल पर्वत श्रृंखला की सबसे ऊंची चोटी है। यह पर्वत घने जंगलों से घिरा हुआ है। यह जगह ट्रेकर्स के बीच काफी लोकप्रिय है। यह स्थान भगवान परशुराम की जन्मस्थली होने के कारण भी जाना जाता है और यहां हर साल कार्तिक पूर्णिमा पर मेला लगता है जो दिवाली के बाद पहली पूर्णिमा होती है ।
पौराणिक कथा के अनुसार, यह भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम का जन्मस्थान है , और हिंदू समुदाय द्वारा इसे पवित्र माना जाता है। पहाड़ी की चोटी पर परशुराम के पिता जमदग्नि का आश्रम है। उनकी मां रेणुका एक प्रसिद्ध चिकित्सक थीं और उन्होंने पहाड़ी और उसके आसपास कई तरह की जड़ी-बूटियां उगाई थीं।
लोककथाओं के अनुसार, इस पहाड़ी पर स्थित तालाब से बारह नदियाँ निकलती हैं, जिनमें चंबल, सरस्वती और नखेरी शामिल हैं।
परशुरामजी का उल्लेख रामायण, महाभारत, भागवत पुराण और कल्कि पुराण इत्यादि अनेक ग्रन्थों में किया गया है। वे अहंकारी और धृष्ट हैहय वंशी क्षत्रियों का पृथ्वी से २१ बार संहार करने के लिए प्रसिद्ध हैं। वे धरती पर वैदिक संस्कृति का प्रचार-प्रसार करना चाहते थे। कहा जाता है कि भारत के अधिकांश ग्राम उन्हीं के द्वारा बसाये गये। जिस मे कोंकण, गोवा एवं केरल का समावेश है। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान परशुराम ने तीर चला कर गुजरात से लेकर केरला तक समुद्र को पिछे धकेल ते हुए नई भूमि का निर्माण किया। और इसी कारण कोंकण, गोवा और केरला मे भगवान परशुराम वंदनीय है। वे भार्गव गोत्र की सबसे आज्ञाकारी सन्तानों में से एक थे, जो सदैव अपने गुरुजनों और माता पिता की आज्ञा का पालन करते थे। वे सदा बड़ों का सम्मान करते थे और कभी भी उनकी अवहेलना नहीं करते थे। उनका भाव इस जीव सृष्टि को इसके प्राकृतिक सौंदर्य सहित जीवन्त बनाये रखना था। वे चाहते थे कि यह सारी सृष्टि पशु पक्षियों, वृक्षों, फल फूल औए समूची प्रकृति के लिए जीवन्त रहे। उनका कहना था कि राजा का धर्म वैदिक जीवन का प्रसार करना है नाकि अपनी प्रजा से आज्ञापालन करवाना। वे एक ब्राह्मण के रूप में जन्में अवश्य थे लेकिन कर्म से एक क्षत्रिय थे। उन्हें भार्गव के नाम से भी जाना जाता है।
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