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Saturday, May 06, 2023

Chamunda mata mandir, Kangra, Himachal Pradesh

यस्माच्चण्डं च मुण्डं च गृहीत्वा त्वमुपागता ।
चामुण्डेति ततो लोके ख्याता देवी भविष्यसि ॥


51 शक्तिपीठों में एक चामुंडा देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित हैं। बनेर नदी के तट पर बसा यह मंदिर महाकाली को समर्पित है। यह मंदिर 700 वर्ष पुराना है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी स्थान पर माता का चरण गिर पड़ा था यहां शक्तिपीठ रूप में स्थापित हो गई।


चामुंडा देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के शानदार हिल स्टेशन पालमपुर में स्थित है। ये मंदिर समुद्र तल से 1000 मी. की ऊंचाई पर स्थित है। यह धर्मशाला से 15 कि॰मी॰ की दूरी पर है। यहां प्रकृति ने अपनी सुंदरता भरपूर मात्रा में प्रदान कि है। चामुण्डा देवी मंदिर बनेर नदी के किनारे पर बसा हुआ है। पर्यटको के लिए यह एक पिकनिक स्पॉट भी है। यहां कि प्राकृतिक सौंदर्य लोगो को अपनी और आकर्षित करता है।


चामुण्डा देवी मंदिर शक्ति के 51 शक्ति पीठो में से एक है। ये मंदिर हिन्दू देवी चामुंडा, जिनका दूसरा नाम देवी दुर्गा भी है, को समर्पित है। चामुंडा देवी हिन्दू धर्म में मां काली का रूप मानी गई हैं। पराशक्तियों की साधना करने वालों की यह देवी आराध्य हैं। यहां पर आकर श्रद्धालु अपने भावना के पुष्प मां चामुण्डा देवी के चरणों में अर्पित करते हैं। मान्यता है कि यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं की सभी मनोकामना पूर्ण होती है। देश के कोने-कोने से भक्त यहां पर आकर माता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।


चामुंडा देवी मंदिर भगवान शिव और शक्ति का स्थान है। भक्तों में मान्यता है कि यहां पर शतचंडी का पाठ सुनना और सुनाना माँ की कृपा पाने के लिए सबसे सरल तरीका है और इसे सुनने और सुनाने वाले का सारा क्लेश दूर हो जाता है।


नवरात्रि में यहां पर विशेष तौर पर माता की पूजा की जाती है। मंदिर के अंदर अखण्ड पाठ किये जाते हैं। सुबह के समय में सप्तचण्डी का पाठ किया जाता है। नवरात्रि में यहां पर विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। प्रत्येक रात्रि को जगरण किया जाता है। नवरात्रि में यहां पर विशेष हवन और पूजा कि जाती है। माता के भक्त माता की एक झलक पाने के लिए घण्टों कतार में खडें रहते हैं।


पौराणिक कथा के अनुसार भगवान् शिव के ससुर राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया जिसमे उन्होंने शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया क्योंकि वह शिव को अपने बराबर का नहीं समझते थे। यह बात सती को काफी बुरी लगी और वह बिना बुलाए यज्ञ में पहुंच गयी। यज्ञ स्‍थल पर शिव का काफी अपमान किया गया जिसे सती सहन न कर सकी और वह हवन कुण्ड में कुद गयीं।


जब भगवान शंकर को यह बात पता चली तो वह आये और सती के शरीर को हवन कुण्ड से निकाल कर तांडव करने लगे। जिस कारण सारे ब्रह्माण्ड में हाहाकार मच गया। पूरे ब्रह्माण्ड को इस संकट से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से कई भागो में बांट दिया जो अंग जहां पर गिरा वह शक्ति पीठ बन गया। मान्यता है कि चामुण्डा देवी मंदिर में माता सती के चरण गिरे थे।


‘दुर्गा सप्तशती’ के सातवे अध्याय में वर्णित कथाओं के अनुसार एक बार चण्ड-मुण्ड नामक दो महादैत्य देवी से युद्ध करने आए तो देवी ने काली का रूप धारण कर उनका वध कर दिया। माता देवी की भृकुटी से उत्पन्न कलिका देवी ने जब चण्ड-मुण्ड के सिर देवी को उपहार स्वरूप भेंट किए तो देवी भगवती ने प्रसन्न होकर उन्हें वर दिया कि तुमने चण्ड-मुण्ड का वध किया है, अतः आज से तुम संसार में ‘चामुंडा’ के नाम से विख्यात हो जाओगी। मान्यता है कि इसी कारण भक्तगण देवी के इस स्वरूप को चामुंडा रूप में पूजते हैं।


यात्री पहाडी सौन्दर्य का लुफ्त उठाते हुए चामुण्डा देवी तक पहुंच सकते हैं। यात्रा मार्ग में अनेंक मनमोहक दृश्य है जो पर्यटको के जेहन में बस जाते हैं। हरी-हरी वादियां और कल-कल कर बहते झरने पर्यटको को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। पर्यटक सड़क मार्ग, वायु मार्ग व रेल मार्ग से मंदिर तक पहुंच सकते हैं।


भारत वर्ष के उत्तरारूण्ड में जालन्धर पीठ के अन्तर्गत श्री चामुण्डा नन्दिकेश्वर धाम पौराणिक काल से शिव शक्ति का अदभुत सिद्वरदायी स्थान है। यह स्थान जालन्धर पीठ इतिहास में उत्तरी द्वारपाल के रूप में जाना जाता है। यहां जालन्धर असुर और महादेव के मध्य युद्ध के अवसर पर भगवती चामुण्डा को अधिष्ठात्री देवी एवं रूद्रत्व पद प्राप्त हुआ था जिससे यह क्षेत्र रूद चामुण्डा रूप में भी ख्याति प्राप्त है।


 सावर्णि मन्वन्तर में जब देवासुर संग्राम हुआ तो भगवती कौशिकी ने अपनी भृकुटि से चण्डिका उत्पन्न की और उसे चण्ड-मुण्ड दैत्यों का वध करने को कहा। तब चण्डिका ने चण्ड-मुण्ड दैत्यों के साथ घोर संग्राम कर उनका वध कर दिया देवी चण्डिका उन दोनों दैत्यों के सिरों को काटकर भगवती कौशिकी के पास ले आई। भगवती ने प्रसन्न होकर कहा कि तुमने चण्ड-मुण्ड दैत्यों को मारा है। अतः तुम्हारी संसार में चामुण्डा नाम से प्रसिद्धि होगी



























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