प्राचीन काल में जब देवास एक गांव था और यहां यातायात के अच्छे साधन नहीं थे, उस समय गौरीशंकर पंडित नामक व्यक्ति महाकाल के परम भक्त थे। वे रोज सुबह महाकाल के दर्शन करने के बाद ही अन्न ग्रहण करते थे। उनका यह नियम अटूट था। एक बार मूसलधार बारिश होने के कारण देवास-उज्जैन मार्ग का नाला उफन गया और वे उज्जैन नहीं जा पाए।
'अपने आराध्य के दर्शन नहीं कर पाने के कारण गौरीशंकरजी ने अन्न-जल त्याग दिया। इस बार बारिश ने रुकने का नाम नहीं लिया और गौरीशंकर जीवन के अंतिम क्षण गिनने लगे। वे मृत्यु के करीब ही थे कि तभी उन्हें भोलेशंकर ने दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा। गौरीशंकर ने प्रभु से नित्य दर्शन का वरदान मांगा। प्रभु ने आशीर्वाद दिया कि जहां भी वे पांच बिल्वपत्र रखेंगे वहीं महाकाल प्रकट होंगे।'
इस संयोग के बाद ही देवास के इस टीले पर स्वयंभू भगवान प्रकट हुए। ग्रामीणों ने यहां मंदिर का निर्माण करवा दिया। उसके बाद यह मंदिर जनआस्था का केंद्र बन गया। इस संयोग के कुछ साल बाद लोगों ने महसूस किया कि मंदिर में स्थापित शिवलिंग लगातार बढ़ रहा है। तब इसे चमत्कार माना जाने लगा। यहां आने वाले लोगों का दावा है कि शिवलिंग शिवरात्रि के दिन एक तिल बढ़ जाता है।